गाँव के बाहर एक छोटा सा तालाब था ,जो अपनी स्वच्छता और शांति के लिए प्रसिद्ध था । पास के लोग वहाँ आकर अपनी थकान मिटाते और तालाब के जल को देखकर सुकून पाते थे । पर कुछ दिन बाद कुछ दूषित सोच वालों ने तालाब के स्वच्छ पवित्र जल में कचरा डालना शुरू कर दिया । और धीरे - धीरे तालाब का पानी गंदा हो गया ,अब लोगों ने वहाँ आना छोड़ दिया , तालाब का किनारा अब सुनसान हो गया , वहाँ की रौनक छिन गई । ऐसे ही -
उसी गाँव में दो मित्र थे - जिनका नाम अर्जुन और रमेश था , अर्जुन का मन स्वच्छ विचारों वाला था वह हमेशा दूसरों के बारे में अच्छा सोचता और सबकी मदद करता और वहीं रमेश का मन दूषित विचारों से भरपूर था । रमेश की सोच दूषित हो चुकी थी । वह दूसरों के अच्छे कामों में भी कमी निकालता और हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता।
एक दिन अर्जुन और रमेश तालाब के किनारे बैठे थे। अर्जुन ने रमेश से पूछा, "तुम हमेशा नकारात्मक क्यों सोचते हो? तुम्हारी सोच इतनी दूषित क्यों हो गई है?"
रमेश ने गुस्से में कहा, "दुनिया ही ऐसी है। लोग स्वार्थी हैं, और सब अपना-अपना फायदा देखते हैं। इसलिए मैं किसी पर भरोसा नहीं करता।"
अर्जुन मुस्कुराया और तालाब की ओर इशारा करते हुए बोला, "देखो, इस तालाब का पानी पहले कितना साफ था। लोग इसकी तारीफ करते थे और यहाँ आकर सुकून पाते थे। लेकिन अब, जब इसमें गंदगी डाल दी गई, तो लोग इसे छोड़कर चले गए।"
रमेश ने सवाल किया, "तो इसका हमारी सोच से क्या लेना-देना?"
अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा, "हमारी सोच भी इस तालाब की तरह है। अगर हम उसमें अच्छे विचार डालें, तो हमारी सोच साफ और निर्मल रहेगी। लेकिन जब हम उसमें नकारात्मकता, जलन, और ईर्ष्या की गंदगी डालते हैं, तो वह दूषित हो जाती है। और दूषित सोच से केवल तनाव और दुःख ही मिलेगा, ठीक उसी तरह जैसे गंदे तालाब से कोई सुकून नहीं पा सकता।"
रमेश ने अर्जुन की बातों पर विचार किया और महसूस किया कि उसकी दूषित सोच ने उसे ही दुःख दिया है। उसने निश्चय किया कि वह अब अपनी सोच को बदलकर, जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखेगा।
निष्कर्ष -
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारे विचार ही हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं। दूषित सोच न केवल हमें बल्कि हमारे आस-पास के वातावरण को भी प्रभावित करती है। इसलिए हमें अपनी सोच को साफ, सकारात्मक और सुकूनदायक बनाना चाहिए, ताकि जीवन की हर कठिनाई में भी शांति और समाधान मिल सके।
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कन्हैयाजी काशी