32 - दूषित सोच क्यों ?

गाँव के बाहर एक छोटा सा तालाब था ,जो अपनी स्वच्छता और शांति के लिए प्रसिद्ध था । पास के लोग वहाँ आकर अपनी थकान मिटाते और तालाब के जल को देखकर सुकून पाते थे । पर कुछ दिन बाद कुछ दूषित सोच वालों ने तालाब के स्वच्छ पवित्र जल में कचरा डालना शुरू कर दिया । और धीरे - धीरे तालाब का पानी गंदा हो गया ,अब लोगों ने वहाँ आना छोड़ दिया , तालाब का किनारा अब सुनसान हो गया , वहाँ की रौनक छिन गई । ऐसे ही -


उसी गाँव में दो मित्र थे - जिनका नाम अर्जुन और रमेश था , अर्जुन का मन स्वच्छ विचारों वाला था वह  हमेशा दूसरों के बारे में अच्छा सोचता और सबकी मदद करता और वहीं रमेश का मन दूषित विचारों से भरपूर था । रमेश की सोच दूषित हो चुकी थी ।  वह दूसरों के अच्छे कामों में भी कमी निकालता और हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता।


एक दिन अर्जुन और रमेश तालाब के किनारे बैठे थे। अर्जुन ने रमेश से पूछा, "तुम हमेशा नकारात्मक क्यों सोचते हो? तुम्हारी सोच इतनी दूषित क्यों हो गई है?"

रमेश ने गुस्से में कहा, "दुनिया ही ऐसी है। लोग स्वार्थी हैं, और सब अपना-अपना फायदा देखते हैं। इसलिए मैं किसी पर भरोसा नहीं करता।"


अर्जुन मुस्कुराया और तालाब की ओर इशारा करते हुए बोला, "देखो, इस तालाब का पानी पहले कितना साफ था। लोग इसकी तारीफ करते थे और यहाँ आकर सुकून पाते थे। लेकिन अब, जब इसमें गंदगी डाल दी गई, तो लोग इसे छोड़कर चले गए।"


रमेश ने सवाल किया, "तो इसका हमारी सोच से क्या लेना-देना?"


अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा, "हमारी सोच भी इस तालाब की तरह है। अगर हम उसमें अच्छे विचार डालें, तो हमारी सोच साफ और निर्मल रहेगी। लेकिन जब हम उसमें नकारात्मकता, जलन, और ईर्ष्या की गंदगी डालते हैं, तो वह दूषित हो जाती है। और दूषित सोच से केवल तनाव और दुःख ही मिलेगा, ठीक उसी तरह जैसे गंदे तालाब से कोई सुकून नहीं पा सकता।"


रमेश ने अर्जुन की बातों पर विचार किया और महसूस किया कि उसकी दूषित सोच ने उसे ही दुःख दिया है। उसने निश्चय किया कि वह अब अपनी सोच को बदलकर, जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखेगा।

 


निष्कर्ष -


यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारे विचार ही हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं। दूषित सोच न केवल हमें बल्कि हमारे आस-पास के वातावरण को भी प्रभावित करती है। इसलिए हमें अपनी सोच को साफ, सकारात्मक और सुकूनदायक बनाना चाहिए, ताकि जीवन की हर कठिनाई में भी शांति और समाधान मिल सके।

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कन्हैयाजी काशी 








 

31 - मुरली और माँ का प्रेम

गोकुल गाँव में एक छोटे से घर में गोपाल नाम का एक बालक रहता था। उसकी माँ यशोदा उसे बहुत प्यार करती थी। गोपाल को भगवान श्रीकृष्ण की कहानियाँ सुनने का बहुत शौक था। उसकी माँ उसे रोज़ रात को कृष्ण की लीलाओं के बारे में कहानियाँ सुनाती थी। गोपाल का मन कृष्ण के बाल रूप में इस कदर डूब गया था कि वो भगवान  को अपना सुहृद और सर्वस्व  समझने लगा। 


हर रोज़ गोपाल अपने छोटे से बगीचे में जाकर एक मुरली लेकर बैठ जाता और कृष्ण की तरह बजाने की कोशिश करता। वह अपने दोस्तों के साथ खेलते हुए कान्हा की कहानियाँ सुनाता  और सबको अपनी गायें चराने के लिए कहता।  गायों की सेवा करने के लिए कहता । गाँव के लोग उसे देखकर हँसते, लेकिन उसकी मासूमियत और भोलेपन पर सभी का दिल आ जाता। 


जन्माष्टमी का दिन आया। गाँव में चारों ओर रौनक थी। हर घर में भगवान कृष्ण के जन्म की तैयारी हो रही थी। गोपाल की माँ ने भी पूरे घर को सजाया और विशेष प्रसाद बनाया। लेकिन गोपाल कुछ उदास था। उसकी माँ ने पूछा, "क्या हुआ बेटा, आज तुम इतने चुप क्यों हो?"


गोपाल ने कहा, "माँ, मुझे भी कृष्ण को बाँसुरी सुनाना  है  पर मेरे पास अच्छी बांसुरी नहीं है। अगर मेरे पास एक अच्छी , प्यारी सी बांसुरी होती, तो मैं भी ठीक वैसे ही बजा सकता जैसे भगवान श्रीकृष्ण बजाते थे।"


माँ ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, भगवान कृष्ण को तो तुम्हारा प्रेम चाहिए। वो बांसुरी हो या ना हो, लेकिन तुम्हारे दिल में अगर सच्चा प्रेम है, तो वो तुम्हारे पास हमेशा रहेंगे।"


रात को जब जन्माष्टमी का उत्सव शुरू हुआ, गोपाल ने देखा कि उसकी माँ ने उसके लिए एक नई बांसुरी खरीदी थी। गोपाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने वह बांसुरी हाथ में ली और भगवान कृष्ण के सामने बैठकर उसे बजाने की कोशिश करने लगा। 


गोपाल ने अपनी आँखें बंद की और मुरली बजाने लगा। गोपाल की माँ ने जब यह दृश्य देखा तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह जानती थी कि उसका बेटा सच्चे प्रेम और भक्ति के कारण भगवान में मन लगा  सका।


उस रात गोपाल ने कृष्ण भगवान की भाव और श्रद्धा से पूजा की भोग लगाया और आनंद  महसूस किया। उसे समझ आ गया कि असली मुरली या कोई वस्तु महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि दिल में सच्चा प्रेम और भक्ति होनी चाहिए। 


इस तरह, जन्माष्टमी का यह दिन गोपाल और उसकी माँ दोनों के लिए सबसे खास बन गया। गोपाल ने अपने दिल में भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन किए, और उसकी माँ ने अपने बेटे के भक्ति और प्रेम को महसूस किया। 


निष्कर्ष -

कहानी का संदेश यह है कि भक्ति और प्रेम ही सच्चे भगवान को पाने का मार्ग है। कोई वस्तु या धन-दौलत भगवान को नहीं, बल्कि आपका सच्चा हृदय और प्रेम उन्हें आकर्षित करता है। तन  , धन संसार को चाहिए उनको दो मन केवल मनमोहन को चाहिए उसे दो , मन की कीमत मन मोहन ही समझता है , संसार तन , धन का भूखा है भगवान केवल मन के भूखे हैं , जी श्री कृष्ण , आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं । 



कन्हैयाजी काशी 




30 - मिट्टी से सोना

 एक गाँव था जो  भवानीपुर के नाम से विख्यात था , उस गाँव मे सभी धर्म जाती के लोग निवास करते थे । उसी गाँव में गोपाल नाम का बहुत ही सुशील मेहनती लड़का रहता  था । गोपाल के तीन और बड़े भाई  थे , गोपाल सबसे छोटा था , हमेशा अपने बड़ों का आदर करता , उनकी आज्ञा  में ही चलता था । तीन बड़े भाइयों का विवाह हो चुका था , गोपाल सबसे छोटा था , और अपने माता पिता का दुलारा था । 


जब गोपाल का विवाह हुआ तो अब भाइयों में बटबारे को लेकर चर्चा होने लगी , तीन भाई आपस में बात करके जमीन का जो उपजाऊ हिस्सा था बाँट लिए । और गोपाल को बंजर भूमि का हिस्सा दे दिया । माता पिता ने अपने बड़े बेटों को बहुत समझाया , जो जमीन का भाग तुमने गोपाल को दिया है उसमे तो अन्न  का एक भी दाना  नहीं उपजता , वो क्या खाएगा और उसका परिवार कैसे चलेगा । लेकिन बड़े भाइयों ने एक न सुनी । 


यह देखकर गोपाल ने मन में ठान  लिया, अब में बहुत मेहनत करूंगा और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर ही छोड़ूँगा । गोपाल खेतों में गया और मेहनत करने लगा ,गाँव के लोगों ने कहा गोपाल इस भूमि पर मेहनत करके कोई लाभ नहीं । तुम शहर जाओ वहीं जाके मेहनत करके अपना परिवार का भरण पोषण करो  । इस बंजर भूमि से तो तुम्हें कुछ मिलने से रहा ।   


परंतु , गोपाल गाँव छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहता था , अपने माता पिता के साथ रहकर ही अपने परिवार का भी भरण पोषण करना चाहता था , गोपाल ने बहुत मेहनत करी ,दिन रात एक कर दिया । मिट्टी की देखभाल करता, और हर पौधे को प्यार से सींचता।

महीने बीत गए, और गोपाल की मेहनत रंग लाने लगी। जहाँ पहले बंजर जमीन थी, वहाँ अब हरे-भरे पौधे उगने लगे। उसकी फसल धीरे-धीरे बढ़ने लगी। गाँव के लोग हैरान थे, जो जमीन कभी वीरान थी, वह अब लहलहाते खेतों में बदल चुकी थी।

 

गोपाल अपनी मेहनत की सफलता से बहुत प्रसन्न था ,वह खेतों में  रहता  फसल की देख भाल करता । समय बीता  फसल पकने पे आई , जब फसल पक कर तैयार हुई, गोपाल ने अपनी फसल को बाजार में बेचा और अच्छी खासी कमाई की। उसने इस पैसे से अपने खेतों में और सुधार किए, और अगले साल फिर से मेहनत शुरू की। धीरे-धीरे, उसकी ज़मीन इतनी उपजाऊ हो गई कि उसने गाँव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया।


 गाँव के लोग अब गोपाल को सम्मान की नजरों से देखते थे। उसने अपनी मेहनत और लगन से यह साबित कर दिया था कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर आप मेहनत और समर्पण से काम करें, तो मिट्टी भी सोना बन सकती है।


निष्कर्ष -

गोपाल की कहानी सिर्फ उसकी नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों की प्रेरणा है जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष करते हैं। उसने यह दिखा दिया कि असंभव कुछ भी नहीं है,अगर आपके पास मेहनत करने का जज़्बा और लगन हो। मिट्टी से सोना बनाने की कला वही जानता है, जो कभी हार नहीं मानता।


कन्हैयाजी काशी -




29 -सफलता कीं नई राहें ''चुनौतियाँ"

 छोटे से घर में रहने वाला अजय ,एक साधारण परिवार का बेटा था । उसकी आँखों में बड़े सपने थे ,लेकिन उसके  सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा था । गरीबी ,शिक्षा की कमी और समाज का तिरस्कार - ये सब उसकी राह में रोड़े थे परंतु अजय के भीतर कुछ अलग था - एक जिद ,कुछ कर दिखाने की । 


अजय का जीवन कठनाइयों से भरा था । स्कूल की फीस भरने के लिए अजय के पिता ने अपना घर गिरवी रख  दिया । अजय जानता था कि उसकी सफलता ही उसके परिवार कि मुक्ति का रास्ता है । उसने दिन रात मेहनत की , मन लगाकर पढ़ाई की और अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया और वह हर छोटी - छोटी समस्याओं का समाधान खुद ही निकाल लेता था , घर वालों को हर छोटी बात नहीं बताता था ताकि घर वाले परेशान ना हो , वह घर की हालत जानता था ।माता - पिता के प्रति बहुत प्रेम भाव रखता था । 


उसे अपने माँ - पिता का हर सपना पूरा करना था , उसके परिवार ने उसके लिए और उसकी शिक्षा के लिए बहुत त्याग किया । माता पिता का तो बस एक ही सपना था ,मेरा बेटा पढ़ लिखकर हम सबका नाम रोशन करे । अजय भी माता पिता की इस तपस्या को भली  भांति जानता था । उसके पिता ने जो  घर पढ़ाई के लिए  गिरवी रखा था ,अजय को  पढ़ लिख कर खूब पैसा कमाकर अपने माता पिता के घर को आजाद कराना  था ।


12 वीं कक्षा के बाद अजय ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा दी , परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण कोचिंग की फीस भी नहीं भर सकता था । उसने अपने दोस्तों से पुरानी किताबें मांगकर पढ़ाई की और दोस्तों के सहयोग से इंटरनेट का सहारा लेकर पढ़ाई करी । वह जानता था उसके पास संसाधन कम थे । लेकिन उसकी मेहनत और लगन अपार थी । 


परिणाम का दिन था । अजय ने अपनी मेहनत और लगन  के दम पर देश के सबसे अच्छे कॉलेज में प्रवेश पा लिया । यह सुनते ही उसके घर में खुशी की लहर दौड़ गई ,लें उसकी यात्रा यही खतम नहीं हुई । कॉलेज के दौरान भी , जब सब छात्र आराम करते , तब अजय को जितना भी टाइम मिलता , उसमें वह काम करता । जिससे घर वालों से पैसे ना लेने पड़ें क्योंकि घर वालों की स्थिति वह जानता ही था । 


कॉलेज के आखिरी वर्ष में । उसको एक बड़ी कम्पनी से नौकरी का ऑफर मिला । उसके और उसके परिवार के लिए यह किसी सपने के सच होने जैसा था । कुछ वर्ष में अजय ने अपना घर आजाद कराया , जिसका जितना रुपया देना था सबका कर्ज चुकाकर । गरीब बच्चों के लिए एक निः शुल्क कोचिंग खुलवाई , जिससे उसके जैसे परिवार के बच्चों को तकलीफ का उठाना पड़े पढ़ने में । अजय और बच्चों के लिए आदर्श बन गया , सब बच्चे अपने माता पिता से कहते मुझे भी अजय भैया जैसा बनना है , गरीब बचहोन के लिए अजय एक मिसाल बन गया । 


 

निष्कर्ष -

 अजय की कहानी यह साबित करती है कि चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन अगर आपके पास साहस, मेहनत और विश्वास है, तो आप इन चुनौतियों को पार करके सफलता की नई राहें बना सकते हैं। कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी बड़ी हों, लेकिन दृढ़ निश्चय के साथ हर बाधा को पार किया जा सकता है। अजय ने यह सिखाया कि रास्ते की चुनौतियाँ हमें रोकने के लिए नहीं होतीं, बल्कि हमें नई राहें दिखाने के लिए होती हैं।


कन्हैया जी काशी -





 


 


28 - लांछन का दंश

सीमा एक साधारण लड़की थी उसके पिता , एक शिक्षक थे , और माँ गृहिणी । सीमा बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी , हमेशा अपने माता - पिता का नाम रोशन करने की चाहत रखती  थी । उसकी मासूमियत और उसकी मेहनत ने उसे हर व्यक्ति का प्रिय बना दिया था । जब सीमा ने   इंटरमीडिएट की परीक्षा टॉप की तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई । सीमा को एक कॉलेज में दाखिला मिल गया , उसके सपने ऊंचे थे और उन्हें पूरा करने के लिए वह दिन रात मेहनत करती थी , लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । 


कॉलेज के दूसरे साल में एक घटना घटी सीमा की उन्नति से जलने वाले एक कॉलेज के ग्रुप ने सीमा के खिलाप एक अफवाह उड़ादी की सीमा का चरित्र ठीक नहीं है और वह गलत संगत में है । जबकि सीमा जिसकी संगति में थी उसको अपना भाई मानती थी ,वह लड़का पढ़ने में तेज था और सीमा को अपनी बहन मानता था , मगर ये झूठे लांछन से सीमा और उसके परिवार को बहुत बड़ा धक्का लगा । 


जो लोग सीमा की तारीफ करते थे अब वह लोग भी सीमा को बुरा कहने लगे और उसकी बुराई करने लगे । सीमा को समझ नहीं आ रहा था ये सब कैसे हुआ । उसके चरित्र पर उठाए गए सवालों ने उसकी आत्मा को झकजोर के राख दिया । वो हर जगह अपमानित महसूस करने लगी । लोग उसे शक की नजर से देखने लगे , उसके माता - पिता को भी समाज के ताने सुनने पड़े । 


सीमा ने खुद को घर में कैद कर लिया । उसकी हिम्मत टूटने लगी और उसके सपने बिखरते नजर आए । एक दिन  सीमा की माँ सीमा के पास आई और माँ ने समझाया बेटा , सत्य कभी छुपता नहीं है जीत हमेशा सत्य की ही होती है , तुम धैर्य रखो और स्थिर चित्त से अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो । माँ बोली बेटा जो लोग आज बिना कुछ सत्य जाने बस तुम्हारे खिलाप बोल रहे हैं । एक दिन वह लोग तुम्हारे सत्य के आगे झुकेंगे । 


तुम्हें अपने सपनों को पूरा करना है , और इन लांछनों को झूठा साबित करना है । सीमा ने माँ की बातों से हिम्मत पाई , उसने बापिस कॉलेज जाकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और कुछ ही महीनों में उसने एक बड़ा स्कॉलरशिप जीत लिया । जिसको कॉलेज में वह अपना भाई मानती थी उसने आकर सीमा को बधाई दी , सीमा ने सबके सामने अपने मुह बोले भाई  को कॉलेज में ही राखी बांधी । सत्य सामने आ गया , अब सीमा की मेहनत की भी बहुत तारीफ होने लगी । 


उसकी मेहनत और सफलता ने सीमा पर लगे सभी लांछनों को मिटा दिया । आज सीमा सफल डॉक्टर है , और वहाँ के लोगों का इलाज करती है , जिन लोगों ने सीमा पर गलत विचार रखें थे वह भी आज तारीफ करते नहीं थकते । सीमा ने साबित कर दिया की एक नारी की अस्मिता उसकी सबसे बड़ी ताकत होती है । और झूठे लांछनों से कभी नहीं झुकाया जा सकता । 


निष्कर्ष -

यह कहानी हमें सिखाती है , मन में आत्म विश्वास हो और घर वालों का साथ हो तो । दुनिया किसी को गिराने के लिए कितना ही बदनाम करें पर जीत सत्य की होगी , नारी के सम्मान और अस्मिता पर बात आई तो , नारी हूँ लड़ सकती हूँ कमजोर मत समझना यह बात बिल्कुल सत्य होती है इस कहानी से । अगर सच्चाई का साथ हो तो कोई भी नारी के आत्म विश्वास को तोड़ नहीं सकता ,     


कन्हैया जी काशी 



27 - आत्म विश्वास की शक्ति

राजू अपने गाँव के स्कूल में पढ़ता था। वह पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन जब भी प्रतियोगिताओं में भाग लेने की बात आती, वह हमेशा पीछे हट जाता। उसे लगता था कि वह दूसरों की तरह अच्छा नहीं कर सकता। उसकी छोटी बहन, सीता, हमेशा उसे प्रोत्साहित करती, लेकिन राजू के मन में खुद पर विश्वास की कमी थी।


एक दिन, शंकर चाचा ने राजू को गांव के मंदिर के पास अकेले बैठा देखा। वे समझ गए कि राजू के मन में कुछ चल रहा है। उन्होंने उसे पास बुलाया और पूछा, "बेटा, क्या बात है? तू इतना परेशान क्यों है?"

राजू ने जवाब दिया, "चाचा, मुझे लगता है कि मैं कभी भी दूसरों की तरह सफल नहीं हो पाऊंगा। मुझे खुद पर भरोसा नहीं है।"


शंकर चाचा मुस्कराए और बोले, "बेटा, सफलता की कुंजी आत्म विश्वास में छिपी होती है। अगर तू खुद पर विश्वास नहीं करेगा, तो कोई भी तेरे ऊपर विश्वास नहीं करेगा। याद रख, हर बड़ा काम पहले छोटे विश्वास से ही शुरू होता है।"


कुछ दिनों बाद, गाँव में एक बड़ी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिसमें पूरे क्षेत्र के बच्चे भाग लेने वाले थे। राजू की बहन सीता ने उसे इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए जोर दिया। मास्टर जी ने भी उसे प्रोत्साहित किया। राजू ने शंकर चाचा की बातों को याद किया और खुद पर विश्वास रखने का निर्णय लिया।


प्रतियोगिता के दिन, राजू का दिल तेजी से धड़क रहा था, लेकिन इस बार उसने खुद से कहा, "मैं कर सकता हूँ।" उसने आत्म विश्वास के साथ प्रतियोगिता में भाग लिया। उसकी मेहनत और आत्म विश्वास रंग लाया, और वह प्रथम स्थान पर आया।


 निष्कर्ष

जब राजू ने जीत का ट्रॉफी अपने हाथों में थामा, तो उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। वह समझ गया था कि आत्म विश्वास की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण होती है। शंकर चाचा, सीता, और मास्टर जी ने उसे बधाई दी और कहा, "देखा बेटा, जब तूने खुद पर विश्वास किया, तो सब कुछ संभव हो गया।"

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आत्म विश्वास किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। बस खुद पर यकीन रखें और हर चुनौती का सामना आत्म विश्वास के साथ करें।



कन्हैयाजी काशी 



26 - जीवन का उपयोग

 जीवन एक अनमोल उपहार है, जो हमें असंख्य संभावनाओं के साथ मिला है। लेकिन क्या हम वास्तव में इस जीवन का पूरा उपयोग कर रहे हैं? क्या हम अपने जीवन की हर क्षण को सार्थक बना रहे हैं? इस बारे में सोचते हुए, मुझे एक पुरानी लेकिन अत्यंत प्रेरणादायक कहानी याद आती है।


एक छोटे से गाँव में दो भाई रहते थे, राम और श्याम। दोनों एक ही परिवार में पले-बढ़े थे, लेकिन उनके सोचने और जीवन जीने के तरीके में ज़मीन-आसमान का फर्क था। 


राम, जो बड़ा भाई था, हमेशा जीवन को एक अवसर के रूप में देखता था। वह हर सुबह सूरज उगने के साथ अपने दिन की शुरुआत करता, अपने काम में लग जाता, और पूरे दिल से मेहनत करता। उसकी मान्यता थी कि जीवन का हर पल अनमोल है, और इसे बेकार नहीं गंवाना चाहिए। 


दूसरी ओर, श्याम, जो छोटा भाई था, हमेशा आलसी और लापरवाह था। वह दिनभर सोता रहता, और जब भी राम उसे कुछ करने के लिए कहता, वह टालमटोल करता और कहता, "कल कर लेंगे, अभी तो समय है।" श्याम का जीवन आराम और आलस्य में बीत रहा था।


समय बीतता गया। राम की मेहनत और संजीदगी के कारण उसका जीवन सफल होने लगा। उसने गाँव में अपनी मेहनत और ईमानदारी से एक अच्छी प्रतिष्ठा बना ली थी। वह लोगों की मदद करता, और गाँव के सभी लोग उसे सम्मान की नज़र से देखते थे। 


दूसरी ओर, श्याम के पास कोई दिशा नहीं थी। उसका समय धीरे-धीरे हाथ से फिसलता जा रहा था, और वह कुछ भी सार्थक नहीं कर पा रहा था। एक दिन, जब श्याम ने देखा कि राम ने अपने जीवन को सार्थक बना लिया है, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसने अपना कीमती समय बर्बाद कर दिया था, और अब उसे अपनी पिछली गलतियों का पछतावा था।


श्याम राम के पास गया और अपनी गलती के लिए माफी मांगी। उसने कहा, "भैया, मैंने अपना जीवन बर्बाद कर दिया। मैंने आपकी बातों को नज़रअंदाज़ किया और अब मुझे इसका अंजाम भुगतना पड़ रहा है।"


राम ने श्याम को गले लगाते हुए कहा, "भाई, जीवन कभी खत्म नहीं होता। जब तक सांसें हैं, तब तक उम्मीद है। अगर तुम सच में अपने जीवन को सुधारना चाहते हो, तो आज से ही शुरुआत करो। यह सही समय है कि तुम अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करो और इसका पूरा उपयोग करो।"


श्याम ने राम की बात मान ली और उसने अपने जीवन को एक नई दिशा दी। उसने आलस्य और लापरवाही को छोड़कर मेहनत और समर्पण का मार्ग अपनाया। धीरे-धीरे उसने भी अपनी पहचान बनाई और गाँव के लोगों के दिलों में जगह बना ली।


निष्कर्ष

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन का उपयोग कैसे करना चाहिए। हमारे पास जितना भी समय है, उसे सही दिशा में लगाना ही हमारे जीवन की सार्थकता को दर्शाता है। आलस्य, टालमटोल, और लापरवाही से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। 

जीवन का हर क्षण अनमोल है, और इसे सार्थक बनाने के लिए हमें अपने प्रयासों को सही दिशा में लगाना चाहिए। आज से ही, अपने जीवन का पूरा उपयोग करने का प्रण लें और अपने हर सपने को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाएँ। यही जीवन की सच्ची सफलता है।


कन्हैया जी काशी 



32 - दूषित सोच क्यों ?

गाँव के बाहर एक छोटा सा तालाब था ,जो अपनी स्वच्छता और शांति के लिए प्रसिद्ध था । पास के लोग वहाँ आकर अपनी थकान मिटाते और तालाब के जल को देखक...