एक विशाल बरगद का पेड़ था, जिसे सभी "बूढ़ा बरगद" कहते थे। यह पेड़ केवल छांव और ठंडक का स्रोत नहीं था, बल्कि एक प्रकार का सामुदायिक केंद्र भी था। इसके विशाल शाखाओं में अनेक पक्षी बसेरा करते थे। सुबह-सुबह पक्षियों की चहचहाहट से रौनक रहती थी।
एक साल,भयंकर सूखा पड़ा। पानी की कमी के कारण भूमि सूखने लगी और पेड़-पौधे मुरझाने लगे। बूढ़ा बरगद भी इस सूखे की चपेट में आ गया। उसकी हरी-भरी पत्तियाँ झड़ने लगीं, शाखाएँ सूखने लगीं और धीरे-धीरे उसका हरा भरा स्वरूप एक मरूस्थल जैसा प्रतीत होने लगा।
पानी की कमी और भोजन की अनुपलब्धता के कारण सभी पक्षी पेड़ छोड़कर अन्यत्र चले गए। लोग भी उदास हो गए क्योंकि बूढ़ा बरगद उनकी खुशियों का केंद्र था। बच्चे अब उसके नीचे खेल नहीं पाते थे, और बूढ़े लोग उसकी छांव में बैठकर गपशप नहीं कर पाते थे।
एक दिन, बगुले ने आकर बताया कि दो - एक दिन में बहुत पानी बरसेगा । बरगद की आँखों में आशा जागी ।वह आसमान की तरफ देखने लगा । दूसरे दिन बादलों ने गर्जन के साथ अपने आने की सूचना दी । बिजली कड़कने लगी । बरगद ने अपने जीवन में बहुत बिजलियाँ देखी थीं । बिजली बरगद के पास आई और बोली ''कहो तो दिखा दूँ में कितनी ताकत बर हूं ? मेरे गिरते ही तुम राख हो जाओगे । बरगद ने कहा - चाहो तो मुझे जला सकती हो , लेकिन कुछ हिस्सा छोड़ देना जिससे पक्षी घोंसला बनाकर रह सकें । ''
अचानक बारिश हुई। सूखा खत्म हो गया और हरियाली लौट आई। बूढ़ा बरगद फिर से अपने पुराने स्वरूप में आ गया। उसकी शाखाओं में फिर से पत्तियाँ लहलहाने लगीं और पक्षी लौट आए। पक्षियों की चहचहाहट से फिर से रौनक आ गई।
लोग बहुत खुश थे। बूढ़ा बरगद फिर से छाँव का केंद्र बन गया, जहाँ बच्चे खेलते, बूढ़े गपशप करते और पक्षी अपनी मधुर ध्वनि से वातावरण को सजीव बनाते।
यह कहानी हमें सिखाती है कि धैर्य, और सच्चाई से कठिनाई का सामना कर सकते हैं। बूढ़ा बरगद सहयोग और धैर्य का प्रतीक बन गया, जो हमेशा उन्हें याद दिलाता रहा कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें हार नहीं माननी चाहिए।
- कन्हैयाजी काशी
मो - 7905304618
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