किरण एक छोटी सी शहर की लड़की थी। उसकी उम्र 18 साल थी और वह अभी-अभी अपने 12वीं की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई थी। उसका सपना था कि वह एक वकील बने और अपने देश की सेवा करे। उसके माता-पिता ने उसे हमेशा सिखाया था कि सच और इंसाफ की राह पर चलना ही सबसे महत्वपूर्ण है।
किरण ने एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई शुरू की। कॉलेज में उसकी मुलाकात कई दोस्तों से हुई, लेकिन सबसे खास दोस्त बनी स्नेहा। स्नेहा भी कानून की छात्रा थी और दोनों ने मिलकर पढ़ाई शुरू की।
एक दिन कॉलेज में खबर आई कि एक छात्रा, प्रिया, को फर्जी आरोप में फंसाया गया है। प्रिया का कहना था कि उसने कुछ गलत नहीं किया है, लेकिन उसके खिलाफ पक्के सबूत थे। किरन और स्नेहा को लगा कि प्रिया के साथ अन्याय हो रहा है।
किरण और स्नेहा ने इस मामले की खुद जांच करने का निर्णय लिया। उन्होंने सबूतों को ध्यान से देखा और पाया कि सबूत फर्जी थे और किसी ने प्रिया को फंसाने की साजिश रची थी। उन्होंने इस बात को कॉलेज प्रशासन के सामने रखा, लेकिन किसी ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया।
किरण और स्नेहा ने हार नहीं मानी। उन्होंने खुद सबूत इकट्ठा किए और अदालत में प्रिया के पक्ष में मुकदमा दायर किया। मामले की सुनवाई हुई और कोर्ट ने किरन और स्नेहा की मेहनत को सराहा। अदालत ने प्रिया को निर्दोष घोषित किया और उसे बरी कर दिया ।
प्रिया की रिहाई के बाद, किरन और स्नेहा को पूरे शहर में सराहा गया। उनकी सच्चाई और न्याय की राह पर चलने की भावना ने सभी को प्रेरित किया। किरन का सपना सच हो गया, उसने न केवल एक वकील बनने की राह पर कदम बढ़ाया, बल्कि इंसाफ की राह पर चलते हुए एक मिसाल कायम की।
निष्कर्ष
किरण और स्नेहा की यह कहानी हमें सिखाती है कि जब हम सच्चाई और न्याय की राह पर चलते हैं, तो कितनी भी मुश्किलें आएं, हम उन्हें पार कर सकते हैं। इंसाफ की डगर कठिन हो सकती है, लेकिन अंततः जीत सच्चाई की ही होती है।इस कहानी कोसाझा करें और लोगों को प्रेरित करें कि वे भी सच्चाई और न्याय की राह पर चलें।
- कन्हैयाजी काशी
मो - 7905304618
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