17 - माँ का कर्ज

जब हम दुनिया में आते हैं, तो हमारे जीवन की पहली पहचान हमारी माँ से होती है। माँ हमें अपने गर्भ में नौ महीने तक पालती हैं और फिर हमारे जन्म के बाद हमारी हर ज़रूरत का ख्याल रखती हैं। ये कहानी मेरी माँ के त्याग और संघर्ष की है, जो मेरे जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा है।



मेरी माँ एक छोटे से गाँव में पली-बढ़ी थीं। शिक्षा के नाम पर उनके पास सिर्फ़ प्राथमिक शिक्षा थी, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जब उनकी शादी हुई, तब भी हमारे परिवार की स्थिति कुछ खास नहीं थी। पिताजी एक छोटे-मोटे किसान थे, और उनके पास ज़्यादा आमदनी का कोई साधन नहीं था।



जब मैं और मेरी बहन पैदा हुए, तब माँ ने अपने सारे सपने और इच्छाएँ हमारे लिए त्याग दीं। माँ ने खेती में पिताजी का हाथ बँटाने के साथ-साथ घर की देखभाल भी की। वे सुबह जल्दी उठकर खेतों में काम करतीं, और फिर घर आकर हमारे लिए खाना बनातीं। उनकी मेहनत और संघर्ष ने हमें हमेशा बेहतर भविष्य की उम्मीद दी।



माँ ने कभी नहीं चाहा कि हम भी उनकी तरह संघर्षपूर्ण जीवन जिएँ। उन्होंने हमें अच्छी शिक्षा देने के लिए हर संभव प्रयास किया। जब गाँव के स्कूल में अच्छे शिक्षक नहीं थे, तो माँ ने पिताजी को मनाया कि हमें शहर के स्कूल में दाखिला दिलवाएँ। उन्होंने खेतों में और ज़्यादा मेहनत की, ताकि हमारे स्कूल की फीस भर सकें।मैंने माँ के संघर्ष को देखा तब मैंने ठान लिया की अब माँ की हर ख्वाहिश पूरी करना है मुझे , मैंने मन लगाकर पढ़ाई की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया  । 



मेरी माँ का कर्ज मुझ पर ऐसा है, जिसे मैं कभी नहीं चुका सकता। उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू को हमारे लिए समर्पित कर दिया। जब भी मैं अपने लक्ष्य से भटकता, माँ की प्रेरणा मुझे हमेशा सही रास्ते पर ले आती। आज मैं जो भी हूँ, वो सब मेरी माँ की मेहनत और त्याग का परिणाम है।


माँ का कर्ज चुकाना संभव नहीं है, लेकिन उनके सम्मान में अपने जीवन को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचाना हमारा कर्तव्य है। माँ की ममता, उनके त्याग और उनकी मेहनत को सलाम करना ही सच्ची श्रद्धांजलि है।



निष्कर्ष -


यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि उन सभी माँओं की है, जिन्होंने अपने बच्चों के भविष्य के लिए हर संघर्ष का सामना किया है। माँ का कर्ज किसी भी कर्ज से बड़ा है, और इसे चुकाने का एकमात्र तरीका है कि हम उनकी उम्मीदों पर खरे उतरें और उनके त्याग का मान रखें। 


 कन्हैया जी काशी 

मो - 7905304618 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

32 - दूषित सोच क्यों ?

गाँव के बाहर एक छोटा सा तालाब था ,जो अपनी स्वच्छता और शांति के लिए प्रसिद्ध था । पास के लोग वहाँ आकर अपनी थकान मिटाते और तालाब के जल को देखक...