19 - स्वर्ग और नरक

एक बार की बात है, एक बुजुर्ग संत अपने शिष्यों को स्वर्ग और नरक के बीच का अंतर समझाने के लिए एक कहानी सुनाने लगे।


संत ने एक दिन अपने शिष्यों को बुलाया और कहा, "मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण सीख देने जा रहा हूँ। चलो, हम स्वर्ग और नरक की यात्रा पर चलते हैं।"

संत ने सबसे पहले उन्हें नरक का दृश्य दिखाया। शिष्य ने देखा कि एक बड़ा सा हॉल था, जिसमें चारों ओर लोग बैठे थे। उनके सामने स्वादिष्ट भोजन की थालियां रखी थीं। लेकिन सभी लोग भूखे और दुखी दिख रहे थे। 


"यह लोग भूखे क्यों हैं?" एक शिष्य ने पूछा।

संत ने कहा, "ध्यान से देखो।"

शिष्य ने देखा कि हर व्यक्ति के हाथ में एक लंबा चम्मच था, जो उसके हाथ से बंधा हुआ था। वे चम्मच इतने लंबे थे कि वे अपना भोजन स्वयं खा नहीं सकते थे। वे सभी निराश और दुखी थे, क्योंकि वे किसी और को खिलाने का विचार ही नहीं कर रहे थे।


संत ने फिर कहा, "चलो, अब स्वर्ग की ओर चलते हैं।"

स्वर्ग का दृश्य भी वैसा ही था। वही बड़ा हॉल, वही स्वादिष्ट भोजन की थालियां, और वही लंबे चम्मच। लेकिन यहाँ का माहौल बिल्कुल अलग था। यहाँ लोग खुश, संतुष्ट और स्वस्थ दिखाई दे रहे थे।


शिष्य ने उत्सुकता से पूछा, "स्वामी जी, यहाँ लोग कैसे खुश हैं?"

संत ने मुस्कुराते हुए कहा, "ध्यान से देखो।"


शिष्य ने देखा कि यहाँ लोग अपने लंबे चम्मच का उपयोग एक-दूसरे को खिलाने के लिए कर रहे थे। वे एक-दूसरे की मदद कर रहे थे, और इस प्रकार सभी खुश और संतुष्ट थे।


संत ने अपनी बात को समाप्त करते हुए कहा, "देखो, स्वर्ग और नरक में कोई बाहरी अंतर नहीं है। यह हमारे दृष्टिकोण और हमारे कर्मों पर निर्भर करता है। जब हम केवल अपने बारे में सोचते हैं और अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं, तो हम नरक में होते हैं। लेकिन जब हम दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं, तो हम स्वर्ग में होते हैं।"


यह कहानी हमारे जीवन की एक महत्वपूर्ण सीख देती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए। जब हम एक-दूसरे के साथ सहयोग और प्रेम से पेश आते हैं, तो हम अपने आस-पास स्वर्ग का निर्माण करते हैं। 


 निष्कर्ष

यह कहानी इस बात को भी उजागर करती है कि सच्ची खुशी और संतोष दूसरों की मदद करने में है। अगर हम सभी इस सिद्धांत को अपनाएं, तो हमारी दुनिया वास्तव में एक बेहतर जगह बन सकती है। इसलिए, चलिए, हम सभी मिलकर एक-दूसरे की मदद करें और इस धरती को स्वर्ग बना दें।


कन्हैयाजी काशी - 

7905304618 


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