मां। पहले विवाह मैं करूंगा। एकदंत के सहसा ऐसे वचन सुनकर पहले तो मां शिवा हंसर्सी और फिर प्रिय पुत्र गणेश विनायक से स्नेहयुक्त स्वर में कहन लोमा कहा। विवाह तो तुम्हारा भी होगा। परंतु कार्तिकेय तुमसे बड़ा है। पहले उसका विवाह हो जाने दो। गणेश ने जिद में आकर कहा कि बड़ा हुआ तो क्या हुआ पहले विवाह मैं करूंगा। इसी बीच कार्तिकेय और भगवान आशुतोष भी आ गए।
कार्तिकेय ने गणेश के मुख से विवाह की बात सुनी तो उन्होंने भी पहले अपने विवाह का आग्रह किया। भगवान शिव ने पार्वती से सारा वृत्तांत सुना। वे यह सुनकर दंग रह गए। फिर बड़ी देर तक हंसे। इसके बाद गंभीर होकर बोले, "तुम दोनों में किसका विवाह पहले होगा, इसके लिए परीक्षा देनी होगी। जो परीक्षा में सफल होगा उसका विवाह पहले होगा।'' इस पर गणेश व कार्तिकेय
दोनों ने सहमति प्रदान कर दी। भगवान आशुतोष ने परीक्षा के रूप में दोनों को आदेश दिया कि दोनों पृथ्वी की परिक्रमा करो, जो पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौटेगा उसी का विवाह पहले होगा। कार्तिकेय पिता शिव की आज्ञा सुनते ही अपने वाहन पर सवार हो लिए और चल पड़े। जबकि गणेश शांत खड़े रहे।
चूहा अपने सवार श्री गणेश को टुकुर-टुकुर निहारने लगा। मां भगवती ने गणेश से कहा, "तुम खड़े-खड़े क्या देख रहे हो, कार्तिकेय तो परिक्रमा के लिए जा चुका है। क्या तुम परिक्रमा नहीं करोगे ? अचानक गणेश को एक युक्ति सूझी। उसने मां पार्वती व पिता शंकर से विनयपूर्वक कहा कि आप कुछ देर के लिए रुकें, मैं अभी आया।
गणेश के इस व्यवहार से शिव-पार्वती एक दूसरे को देखते रह गए। थोड़ी देर में गणेश हाथ में पूजा की थाली लिए आते दिखे । गणेश ने पूजा की थाली शिव-पार्वती के चरणों में रख हाथ जोड़े और परिक्रमा करने लगे। शिव-पार्वती दोनों इस विचित्र दृश्य को देखकर अपनी हंसी न रोक सके।
वे गणेश से कहने लगे, "अरे यह क्या कर रहे हो ?" गणेश ने बिना कोई जवाब दिए माता-पिता की सात बार परिक्रमा की, उनकी आरती उतारी और तिलक लगाया। भोग की कटोरी सामने रख दोनों को दण्डवत प्रणाम किया और कहा, "मैंने तो धरती की परिक्रमा पूरी कर ली।"
भगवान आशुतोष व मां शिव ने गणेश को आश्चर्य भरी निगाहों से देखा। फिर पूछा, "क्या संपूर्ण वसुंधरा की परिक्रमा हो गई?" इस पर चंचलबुद्धि गणेश ने हामी भरते हुए कहा कि वेदशास्त्रों के अनुसार माता-पिता की परिक्रमा करने से पृथ्वी की परिक्रमा पूरी हो जाती है। इस पर भगवान शिव व मां पार्वती को गणेश जी का तर्क स्वीकार करना पड़ा और मानना पड़ा कि इस प्रतियोगिता में विनायक गणेश की विजय हुई है।
सिद्धि विनायक गणेश ने यह सिद्ध कर दिया कि माता-पिता ही महान तीर्थ हैं। यदि कोई पुत्र संपूर्ण धरा की परिक्रमा करने का फल चाहता है तो वह अपने माता-पिता की प्रदक्षिणा करे। पुत्र के लिए माता-पिता से बढ़कर कोई तीर्थ नहीं है।
कन्हैयाजी काशी
7905304618
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