एक व्यक्ति चाहकर भी अपने दुर्गुणों को काबू में नहीं कर पा रहा था। एक बार उसके गांव में संत फरीद आए। उसने उनसे अपनी परेशानी बताई। फरीद ने कहा, "दृढ़ संकल्प से ही दुर्गुण छूटते हैं।
यदि तुम इच्छाशक्ति मजबूत कर लोगे तो तुम्हें अपने दोषों से मुक्ति मिल जाएगी।" वह व्यक्ति प्रयास करके थक गया मगर उसे सफलता नहीं मिली। वह फिर फरीद के पास गया। फरीदने पहले उसके माथे की रेखाएं देखने का नाटक किया, फिर बोले, " अरे तुम्हारी जिंदगी के चालीस दिन ही शेष हैं।
अगर इन बचे दिनों में तुमने दुर्गुण त्याग दिए तो तुम्हें सद्गति मिल जाएगी।" यह सुनकर वह आदमी परेशान हो गया। वह किसी तरह घर पहुंचा और व्यसनों की बात तो दूर, खाना-पीना तक भूल गया। वह हर पल ईश्वर को याद करता रहा। उसने एक भी गलत कार्य नहीं किया।
चालीस दिन बीतने पर वह फरीद के पास पहुंचा। उन्होंने पूछा, "इतने दिनों में तुमने कितने गलत कार्य किए ?" उस व्यक्ति ने जवाब दिया, "मैं क्या करता। मैं तो हर पल ईश्वर को याद करता रहा।" संत फरीद मुस्कराते हुए बोले, "जाओ, अब तुम पूरी तरह सुरक्षित हो। तुम अच्छे इंसान बन गए हो। जो व्यक्ति हर समय मृत्यु को ध्यान में रखकर जीवनयापन करता है वह भला इंसान बन जाता है।"
निष्कर्ष
यह कहानी से हमें यह सीख मिलती है की गलत रास्ते पर कभी मन जा रहा है तो किसी सद्गुरु की शरण में जाकर सत्य को जाने , मन भय से सुधरता है , हम यहाँ आए हैं तो यात्रा पूरी करके जाना भी है , मृत्यु अटल सत्य है , इसको याद रखो जिससे हमारा मन व्यभिचार में ना लगे , समाज , संसार के अच्छे कार्यों में सेवा में मन लगे , समय का सदुपयोग हो , जीवन की यात्रा सत्य से जुड़ी हुई होना चाहिए ,
कन्हैयाजी काशी
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