गाँव के छोर पर, जहां पगडंडी पेड़ों के सघन झुरमुटों के बीच गुम हो जाती थी, वहीं एक छोटी सी झोंपड़ी में राँका और बांका रहते थे। दोनों भाई थे, और उनका जीवन साधना और तपस्या में व्यतीत होता था। राँका, बड़ा भाई, बुद्धिमान और गंभीर था। उसका हृदय साधना की गहराइयों में डूबा रहता। उसने अपने जीवन का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और ईश्वर की प्राप्ति को बना लिया था। वह घंटों ध्यान में बैठा रहता, और उसकी साधना से उसका मन अचल और स्थिर हो गया था।
दूसरी ओर, बांका, छोटा भाई, चंचल और जीवन से भरपूर था। उसे जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में रस आता। वह प्रकृति के साथ खेलता, जंगल में घूमता और फूलों की महक से अपने दिल को ताजगी देता। उसका मन मोह में फंसा हुआ था, और उसे जीवन की माया में बड़ा आनंद आता।एक दिन, राँका ने बांका से कहा, "भाई, यह जीवन केवल माया और मोह का खेल नहीं है। हमें आत्मा की साधना करनी चाहिए, जिससे हम जीवन के असली उद्देश्य को समझ सकें।"
बांका ने हंसते हुए उत्तर दिया, "भैया, मैं जानता हूँ कि साधना महान है, परन्तु इस जीवन के रंग-रूप को छोड़कर मैं नहीं जी सकता। फूलों की महक, पंछियों का गान, और इन सबकी माया में जो सुख है, वह अद्भुत है।"राँका ने गंभीरता से कहा, "भाई, मोह की यह माया तुम्हें भटका सकती है। परंतु मैं तुम्हें बाध्य नहीं करूंगा। तुम अपनी राह पर चलो, और मैं अपनी।" पर याद रखना चंचल मन वाला कभी जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता । इंद्रियों का सुख चाहने वाला मोह मे पड़कर अपने लक्ष्य को भूल जाता है , फिर तुम्हारी मर्जी ।
समय बीतता गया। राँका अपनी साधना में और भी गहरे उतरता गया, जबकि बांका मोह के जाल में और उलझता गया। एक दिन बांका ने एक सुंदर स्त्री को जंगल में देखा । उसकी खूबसूरती से मोहित होकर बांका उसके पास गया और उसका परिचय लिए बिना ही अपने मन की बात कहदी । वह एक व्यभिचारी स्त्री थी जिसके जीवन में धन ही सब कुछ था । बांका धीरे-धीरे मोह सुख के गहरे अंधेरे में खो गया। दिन बीता, रात हुई, पर बांका लौटकर नहीं आया। राँका चिंतित हो गया। उसने अपनी साधना छोड़ दी और बांका को खोजने निकल पड़ा। जंगल में बहुत ढूंढने के बाद, उसने बांका को बेहोश अवस्था में पाया।
राँका ने उसे उठाया और घर लेकर आया। बांका अब भी होश में नहीं आया था। राँका ने उसे अपनी गोद में रखकर कहा, "भाई, यह मोह ही था जिसने तुम्हें यह दशा दी है। अगर तुमने साधना की होती, तो इस माया के जाल में न फंसते।"बांका ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और राँका की ओर देखा। उसकी आँखों में पछतावे का भाव था। उसने कहा, "भैया, तुम सही थे। मोह ने मुझे अंधा कर दिया। अब मैं समझ गया हूँ कि साधना ही सच्ची राह है।"
राँका ने बांका को गले लगाया और कहा, "भाई, अभी भी समय है। तुम साधना में अपना मन लगाओ, और इस मोह के जाल से मुक्त हो जाओ।"उस दिन से बांका ने भी साधना का मार्ग अपना लिया। अब दोनों भाई साथ-साथ ध्यान करते, और मोह के बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धि के पथ पर बढ़ते चले गए।
निष्कर्ष
राँका और बांका की यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में साधना का महत्व कितना गहरा होता है, और मोह का जाल हमें कितना भटका सकता है। साधना से ही मनुष्य जीवन के सच्चे उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है।
- कन्हैयाजी काशी
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