24 - प्रशंसा का प्रभाव

महपुरुष चले जाते हैं । मगर उन्होंने जैसा जीवन जिया उससे कई पीढ़ियाँ प्रेरणा लेती रहती हैं , ऐसी ही एक महापुरुष हुए जिनका नाम है विनोवा भावे , जिन्होंने समाज को अच्छी प्रेरणा और शिक्षा दी । एक कथा संत विनोवा भावे जी को लेकर है  । 


कहते हैं की एक बार जब संत विनोवा भावे जी को महात्मा गांधी जी का पत्र आया । तो उन्होंने उसे  पढ़ा और फाड़कर फेंक दिया , उनके द्वारा इस तरह पत्र को फाड़ दिए जाने पर आश्रम में रहने वाले छात्रों को बड़ा आश्चर्य हुआ ,उनकी जिज्ञासा को संत विनोवा समझ गए और विनोवा जी बोले - मैंने पत्र इसीलिए फाड़ दिया क्योंकि इस पत्र में सबसे बड़ा झूठ लिखा था । 


विनोवा भावे जी की बात को सुनकर सभी  छात्र अचरज में पढ़ गए , कि  सत्य और अहिंसा की बात करने वाले महात्मा गांधी भला झूठ क्यों लिखेंगे । छात्रों ने फिर जिज्ञासा की तो संत विनोवा जी स्पष्ट करते हुए कहते हैं ,यह सच है की महात्मा गांधी जी झूठ नहीं लिखते , पर इस पत्र में उन्होंने मेरे लिए जो बात लिखी मुझे पसंद नहीं आई , ऐसी बातों से सबको बचना चाहिए । 


ऐसी बातों को स्वीकार करने से जीवन की उन्नति रुक जाएगी और  आपके विकास में बाधा आएगी । उन्होंने  इस पत्र में मेरी प्रशंसा करते हुए मुझे सर्वश्रेष्ठ  व्यक्ति कहा है , संत विनोवा जी ने छात्रों से कहा कि  , मैं जानता हूँ कि  इस विराट विश्व में मुझसे श्रेष्ठ असंख्य लोग हैं । मुझे डर  लगा की उनके इस पत्र में लिखी बात को अगर में अंगीकार करता  हूँ तो मेरे अंदर अहंकार पैदा हो सकता है । 


अहंकार मेरी प्रगति में बाधक ही हो सकता है , अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो प्रशंसा सुनने से बचो प्रशंसा से जीवन में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है , अगर सावधान और समझदारी से इसका अनुशासन नहीं किया तो आपकी उन्नति में बहुत बड़ा बाधक बनेगा , इसीलिए मैंने यह पत्र फाड़ दिया ।  


  निष्कर्ष -

प्रशंसा, जब सही मात्रा में और सही समय पर की जाती है, तो यह आत्मविश्वास को बढ़ावा देती है और प्रेरणा का स्रोत बन सकती है। लेकिन जब इसकी मात्रा अत्यधिक हो जाती है, तो यह आत्ममुग्धता और आत्मसंतुष्टि की ओर ले जाती है, जिससे उन्नति की राह में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। अतः, आवश्यक है कि हम प्रशंसा को संतुलित दृष्टिकोण से स्वीकार करें और उसे अपने व्यक्तिगत विकास का साधन बनाएं, न कि ठहराव का। उन्नति के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए, आत्ममूल्यांकन और विनम्रता को साथ लेकर चलना चाहिए, ताकि हमारी यात्रा प्रेरणादायक और सतत बनी रहे। 


कन्हैया जी काशी 





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

32 - दूषित सोच क्यों ?

गाँव के बाहर एक छोटा सा तालाब था ,जो अपनी स्वच्छता और शांति के लिए प्रसिद्ध था । पास के लोग वहाँ आकर अपनी थकान मिटाते और तालाब के जल को देखक...