एक बार की बात है, एक महात्मा थे उनका सुदूर जंगल में एक आश्रम था , जिसमें नित्य यज्ञ आदि होते थे और जब समय मिलता तो महात्मा जी अपने शिष्यों को वेद आदि पढ़ाने का काम करते थे, आश्रम मे असीम शांति का अनुभव होता था । कोई भी परेशान मन वाला व्यक्ति भी आश्रम में पहुँच जाता तो उसको अद्भुत शांति मिलती थी , आश्रम के आस - पास थोड़ी दूर पर जो गाँव बसे हुए थे , उन गांवों में रहने वाले लोग हमेशा महात्मा जी के पास आकर सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा लेते और उसका अनुगमन करते ।
एक बार आश्रम में रोती विलखती एक महिला महात्मा जी के पास आई , महात्मा जी बोले - पुत्री रोने का क्या कारण है हमें बताओ , महिला ने महात्मा जी को प्रणाम किया और अपनी बात बताने लगी , महिला बोली - महाराज मेरा एक ही पुत्र है , और हम चाहते थे वह अच्छा गुणवान बने , पर गलत की संगति करके उसने हम लोगों का जीना मुहाल कर दिया । अब आप ही कोई मार्ग बताइए जिससे हमारा पुत्र सुधर जाए और अच्छे मार्ग का अनुशरण करे । महात्मा जी ने महिला से कहा तुम घर जाओ में कोई उपाय करता हूँ उसको सुधारने का ।
महात्मा जी ने अपने सुयोग्य शिष्यों को बुलाया और अपने शिष्यों को एक ऐसे व्यक्ति को सुधारने का कार्य सौंपा जो जरूरत से ज्यादा नशा करता था और कुसंग में अपना जीवन बरवाद कर रहा था , इससे वह स्वयं तो बरवाद हो ही रहा था , उसका पूरा परिवार भी तबाह हो रहा था । शिष्य उसके पास गए और कुछ ही दिनों में वापस आकर महात्मा जी से बोले, ''गुरु जी - हमने पूरा प्रयास कर लिया पर वह सुधरने वाला नहीं है । ''
महात्मा जी ने शिष्यों से कहा '' मैंने तुम्हें चंदन बनने की शिक्षा दी । जो कुल्हाड़ी चंदन को काटती है वह भी सुगंधित हो जाती है । चंदन अपना स्वभाव नहीं छोड़ता । जब वह व्यक्ति अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो तुम अपना स्वभाव छोड़कर बापस कैसे आ गए ? वह बुराई का मार्ग नहीं छोड़ रहा तो तुम भलाई का मार्ग कैसे छोड़ सकते हो ? स्वभाव के मामले में तो वह व्यक्ति तुमसे भी अच्छा निकला ।
अब मुझे लगता है मेरी शिक्षा में कुछ कमी रह गई । ''शिष्यों को गुरुजी की बातों से अपनी गलती का अहसास हुआ और वे दोबारा उस व्यक्ति को सुधारने चल दिए । वह व्यक्ति कुसंग से बिगड़ा था , शिष्यों ने सोचा इसको अच्छा संग मिलेगा तो सुधर जाएगा । इस बार उन्होंने जी जान से प्रयास किया , और वह व्यक्ति सुधर गया और उसका और पूरे परिवार का जीवन ही बदल दिया ।
निष्कर्ष -
कुसंग से बचने के लिए सतर्कता और आत्म-नियंत्रण आवश्यक हैं। सही संगति का चुनाव, जीवन में सकारात्मक आदतों को अपनाने और नैतिक मूल्यों पर दृढ़ रहने से हम कुसंग के प्रभाव से बच सकते हैं। स्वयं को सदैव अच्छे विचारों, पुस्तकों और व्यक्तियों के संग रखने से जीवन में स्थिरता और सफलता प्राप्त की जा सकती है। अंततः, हमारी संगति ही हमारे व्यक्तित्व और भविष्य का निर्माण करती है, इसलिए इसे बुद्धिमानी से चुनना अनिवार्य है।
कन्हैयाजी काशी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें