राजू अपने गाँव के स्कूल में पढ़ता था। वह पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन जब भी प्रतियोगिताओं में भाग लेने की बात आती, वह हमेशा पीछे हट जाता। उसे लगता था कि वह दूसरों की तरह अच्छा नहीं कर सकता। उसकी छोटी बहन, सीता, हमेशा उसे प्रोत्साहित करती, लेकिन राजू के मन में खुद पर विश्वास की कमी थी।
एक दिन, शंकर चाचा ने राजू को गांव के मंदिर के पास अकेले बैठा देखा। वे समझ गए कि राजू के मन में कुछ चल रहा है। उन्होंने उसे पास बुलाया और पूछा, "बेटा, क्या बात है? तू इतना परेशान क्यों है?"
राजू ने जवाब दिया, "चाचा, मुझे लगता है कि मैं कभी भी दूसरों की तरह सफल नहीं हो पाऊंगा। मुझे खुद पर भरोसा नहीं है।"
शंकर चाचा मुस्कराए और बोले, "बेटा, सफलता की कुंजी आत्म विश्वास में छिपी होती है। अगर तू खुद पर विश्वास नहीं करेगा, तो कोई भी तेरे ऊपर विश्वास नहीं करेगा। याद रख, हर बड़ा काम पहले छोटे विश्वास से ही शुरू होता है।"
कुछ दिनों बाद, गाँव में एक बड़ी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिसमें पूरे क्षेत्र के बच्चे भाग लेने वाले थे। राजू की बहन सीता ने उसे इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए जोर दिया। मास्टर जी ने भी उसे प्रोत्साहित किया। राजू ने शंकर चाचा की बातों को याद किया और खुद पर विश्वास रखने का निर्णय लिया।
प्रतियोगिता के दिन, राजू का दिल तेजी से धड़क रहा था, लेकिन इस बार उसने खुद से कहा, "मैं कर सकता हूँ।" उसने आत्म विश्वास के साथ प्रतियोगिता में भाग लिया। उसकी मेहनत और आत्म विश्वास रंग लाया, और वह प्रथम स्थान पर आया।
निष्कर्ष
जब राजू ने जीत का ट्रॉफी अपने हाथों में थामा, तो उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। वह समझ गया था कि आत्म विश्वास की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण होती है। शंकर चाचा, सीता, और मास्टर जी ने उसे बधाई दी और कहा, "देखा बेटा, जब तूने खुद पर विश्वास किया, तो सब कुछ संभव हो गया।"
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आत्म विश्वास किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। बस खुद पर यकीन रखें और हर चुनौती का सामना आत्म विश्वास के साथ करें।
कन्हैयाजी काशी
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