31 - मुरली और माँ का प्रेम

गोकुल गाँव में एक छोटे से घर में गोपाल नाम का एक बालक रहता था। उसकी माँ यशोदा उसे बहुत प्यार करती थी। गोपाल को भगवान श्रीकृष्ण की कहानियाँ सुनने का बहुत शौक था। उसकी माँ उसे रोज़ रात को कृष्ण की लीलाओं के बारे में कहानियाँ सुनाती थी। गोपाल का मन कृष्ण के बाल रूप में इस कदर डूब गया था कि वो भगवान  को अपना सुहृद और सर्वस्व  समझने लगा। 


हर रोज़ गोपाल अपने छोटे से बगीचे में जाकर एक मुरली लेकर बैठ जाता और कृष्ण की तरह बजाने की कोशिश करता। वह अपने दोस्तों के साथ खेलते हुए कान्हा की कहानियाँ सुनाता  और सबको अपनी गायें चराने के लिए कहता।  गायों की सेवा करने के लिए कहता । गाँव के लोग उसे देखकर हँसते, लेकिन उसकी मासूमियत और भोलेपन पर सभी का दिल आ जाता। 


जन्माष्टमी का दिन आया। गाँव में चारों ओर रौनक थी। हर घर में भगवान कृष्ण के जन्म की तैयारी हो रही थी। गोपाल की माँ ने भी पूरे घर को सजाया और विशेष प्रसाद बनाया। लेकिन गोपाल कुछ उदास था। उसकी माँ ने पूछा, "क्या हुआ बेटा, आज तुम इतने चुप क्यों हो?"


गोपाल ने कहा, "माँ, मुझे भी कृष्ण को बाँसुरी सुनाना  है  पर मेरे पास अच्छी बांसुरी नहीं है। अगर मेरे पास एक अच्छी , प्यारी सी बांसुरी होती, तो मैं भी ठीक वैसे ही बजा सकता जैसे भगवान श्रीकृष्ण बजाते थे।"


माँ ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, भगवान कृष्ण को तो तुम्हारा प्रेम चाहिए। वो बांसुरी हो या ना हो, लेकिन तुम्हारे दिल में अगर सच्चा प्रेम है, तो वो तुम्हारे पास हमेशा रहेंगे।"


रात को जब जन्माष्टमी का उत्सव शुरू हुआ, गोपाल ने देखा कि उसकी माँ ने उसके लिए एक नई बांसुरी खरीदी थी। गोपाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने वह बांसुरी हाथ में ली और भगवान कृष्ण के सामने बैठकर उसे बजाने की कोशिश करने लगा। 


गोपाल ने अपनी आँखें बंद की और मुरली बजाने लगा। गोपाल की माँ ने जब यह दृश्य देखा तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह जानती थी कि उसका बेटा सच्चे प्रेम और भक्ति के कारण भगवान में मन लगा  सका।


उस रात गोपाल ने कृष्ण भगवान की भाव और श्रद्धा से पूजा की भोग लगाया और आनंद  महसूस किया। उसे समझ आ गया कि असली मुरली या कोई वस्तु महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि दिल में सच्चा प्रेम और भक्ति होनी चाहिए। 


इस तरह, जन्माष्टमी का यह दिन गोपाल और उसकी माँ दोनों के लिए सबसे खास बन गया। गोपाल ने अपने दिल में भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन किए, और उसकी माँ ने अपने बेटे के भक्ति और प्रेम को महसूस किया। 


निष्कर्ष -

कहानी का संदेश यह है कि भक्ति और प्रेम ही सच्चे भगवान को पाने का मार्ग है। कोई वस्तु या धन-दौलत भगवान को नहीं, बल्कि आपका सच्चा हृदय और प्रेम उन्हें आकर्षित करता है। तन  , धन संसार को चाहिए उनको दो मन केवल मनमोहन को चाहिए उसे दो , मन की कीमत मन मोहन ही समझता है , संसार तन , धन का भूखा है भगवान केवल मन के भूखे हैं , जी श्री कृष्ण , आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं । 



कन्हैयाजी काशी 




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

32 - दूषित सोच क्यों ?

गाँव के बाहर एक छोटा सा तालाब था ,जो अपनी स्वच्छता और शांति के लिए प्रसिद्ध था । पास के लोग वहाँ आकर अपनी थकान मिटाते और तालाब के जल को देखक...